नागिन का सपना
सत्यदेव www.drishtipat.com
भोर का समय था। पहाड़ी की एक कंदरा में एक नाग-नागिन का जोड़ा आलिंगनबद्ध होकर सुखद नींद का आनंद ले रहा था। अचानक नागिन की नींद उचट गई। नींद खुलते ही वह सुबक-सुबक कर रोने लगी। उधर नाग की नींद भी खुल गई। वह नागिन को सुबकते हुए देख कुछ समझ नहीं पाया। इधर नागिन बिना कुछ बोले बेजार रोये जा रही थी। आखिर नाग ने नागिन से पूछा, ‘‘प्रिया ! आखिर तुम्हें क्या हो गया है? अचानक तुम क्यों रोने लगी?’’
नागिन सुबकते हुए बोली, ‘‘प्रिय मैंने एक बहुत भयानक एवं बुरा स्वप्न देखा है...मुझे बहुत डर लग रहा है...’’
नाग ने कहा, ‘‘बोलो तो सही... आखिर क्या स्वप्न देखा?’’
नागिन रोती हई बोली, ‘‘स्वामी! मैंने सपने में देखा कि एक इंसान चुपके से आया और सोये में अपना दाँत गड़ा कर आपको डंस कर भाग गया...।’’
‘‘फिर क्या हुआ?’’, नाग ने आगे पूछा।
‘‘फिर होना क्या था! इंसान के दाँत के वीष आपके पूरे शरीर में फैल गया और आप तड़प-तपड़ कर मर गए...।’’ कहती हई नाग से लिपट गई।
नाग ने नागिन को समझाया, ‘‘सपना सपना ही होता है, इसमें डरने की क्या बात है!
नागिन बोली, ‘‘नहीं प्रिय ! सुना है इंसानों के काटने पर जहर का पता नहीं चलता और उसका कोई झाड़फूंक भी नहीं है...चलो यहाँ से कहीं दूर चलते हैं, जहाँ इंसान की छाया भीन दिखे।’’
पौ फटने के पहले दोनों नाग-नागिन का जोड़ा सुनसान घनघोर जंगल की ओर आहिस्ता-आहिस्ता सरक पड़ा। जन्मस्थान: डालटनगंज, झारखंड.
प्रकाशित पुस्तक: गूँज, कविता संग्रह।
उपलब्धियां : दर्जनों कहानियाँ, लघुकथाएँ, कविताएँ पत्रा-पत्रिकाओं में प्रकाशित। प्रकाश्य पुस्तकें: हँसते फूल, चूभते काँटें ;कविता संग्रहद्ध, सुनन्दा ;उपन्यासद्ध। सम्प्रति: झारखंड सरकार में आपूर्ति निरीक्षक के पद पर सेवा।
आत्मकथ्य: जब लिखे बिना नहीं रहा जाता, तो स्वतः कलम चल पड़ती है गरीबों की सेवा परम कर्तव्य।
संपर्क: 0980132841
भोर का समय था। पहाड़ी की एक कंदरा में एक नाग-नागिन का जोड़ा आलिंगनबद्ध होकर सुखद नींद का आनंद ले रहा था। अचानक नागिन की नींद उचट गई। नींद खुलते ही वह सुबक-सुबक कर रोने लगी। उधर नाग की नींद भी खुल गई। वह नागिन को सुबकते हुए देख कुछ समझ नहीं पाया। इधर नागिन बिना कुछ बोले बेजार रोये जा रही थी। आखिर नाग ने नागिन से पूछा, ‘‘प्रिया ! आखिर तुम्हें क्या हो गया है? अचानक तुम क्यों रोने लगी?’’
नागिन सुबकते हुए बोली, ‘‘प्रिय मैंने एक बहुत भयानक एवं बुरा स्वप्न देखा है...मुझे बहुत डर लग रहा है...’’
नाग ने कहा, ‘‘बोलो तो सही... आखिर क्या स्वप्न देखा?’’
नागिन रोती हई बोली, ‘‘स्वामी! मैंने सपने में देखा कि एक इंसान चुपके से आया और सोये में अपना दाँत गड़ा कर आपको डंस कर भाग गया...।’’
‘‘फिर क्या हुआ?’’, नाग ने आगे पूछा।
‘‘फिर होना क्या था! इंसान के दाँत के वीष आपके पूरे शरीर में फैल गया और आप तड़प-तपड़ कर मर गए...।’’ कहती हई नाग से लिपट गई।
नाग ने नागिन को समझाया, ‘‘सपना सपना ही होता है, इसमें डरने की क्या बात है!
नागिन बोली, ‘‘नहीं प्रिय ! सुना है इंसानों के काटने पर जहर का पता नहीं चलता और उसका कोई झाड़फूंक भी नहीं है...चलो यहाँ से कहीं दूर चलते हैं, जहाँ इंसान की छाया भीन दिखे।’’
पौ फटने के पहले दोनों नाग-नागिन का जोड़ा सुनसान घनघोर जंगल की ओर आहिस्ता-आहिस्ता सरक पड़ा। जन्मस्थान: डालटनगंज, झारखंड.
प्रकाशित पुस्तक: गूँज, कविता संग्रह।
उपलब्धियां : दर्जनों कहानियाँ, लघुकथाएँ, कविताएँ पत्रा-पत्रिकाओं में प्रकाशित। प्रकाश्य पुस्तकें: हँसते फूल, चूभते काँटें ;कविता संग्रहद्ध, सुनन्दा ;उपन्यासद्ध। सम्प्रति: झारखंड सरकार में आपूर्ति निरीक्षक के पद पर सेवा।
आत्मकथ्य: जब लिखे बिना नहीं रहा जाता, तो स्वतः कलम चल पड़ती है गरीबों की सेवा परम कर्तव्य।
संपर्क: 0980132841
No comments:
Post a Comment